जाने ईरान के सुप्रीम नेता अयातुल्लाह खामेनेई का यूपी के बाराबंकी से क्या है कनेक्शन

लखनऊ। ईरान और इजरायल में युद्ध के दौरान यूपी की राजधानी लखनऊ से सटा छोटा सा जिला बाराबंकी चर्चा में है। ईरान के शिया और लखनऊ के शिया विद्वान् मुसलमानों का बड़ा गढ़ रहा है । भारत लखनऊ,बाराबंकी और हैदराबाद सहित कई जगहों पर शिया मुस्लमान नवाब रहे हैं, जो धर्मिक कार्यो के साथ सामाजिक कार्य भी किये। कई दशक पहले यह शिया मुसलमान धार्मिक यात्रा पर गए। वहीं के रह गए, बाराबंकी में इनके खानदान के लोग रह रहे हैं ।

आप को बताते चले कि बाराबंकी का कनेक्शन ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामेनेई से है। वही खामेनेई जिसने इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद के हेडक्वार्टर पर ताबड़तोड़ मिसाइलें दागकर धुंआ भर दिया और अब अपनी जान बचाने के लिए बंकर में रह रहा है। खामेनेई के पूर्वज बाराबंकी के छोटे से गांव किंतूर में रहते थे। जोकि वर्तमान समय सिरौलीगौसपुर व्लाक में बदोसराय के पास है वही जगह जहां महाभारत कालीन कुन्ती माता में कुंतेश्वर महादेव की स्थापना कर पारिजात के स्वर्णपुष्प चढ़ाए। जो आज भी आस्था और उपासना का अति विशिष्ट मन्दिर है।

हम आपको कुछ शताब्दी पीछे ले चलते हैं.. सब जानते हैं कि ईरान में हमेशा सत्ता संघर्ष चलता रहता है। 17वीं और 18वीं सदी में इसी संघर्ष के कारण ईरान के शिया विद्वान वहां से भागे और भारत आ गए। भारत में लखनऊ, बाराबंकी और हैदराबाद जैसे शहरों में शिया नवाबों का बड़ा प्रभाव था। बाराबंकी का किंतूर गांव उस दौर में शिया विद्वानों का केंद्र हुआ करता था। ईरान से भागे शिया विद्वान लखनऊ, बाराबंकी और हैदराबाद में रहने लगे।

लोग कहते हैं कि खामेनेई के परदादा सैयद अहमद मुसावी 19वीं सदी की शुरुआत में किंटूर गांव में ही पैदा हुए थे। 1834 में सैयद मुसावी धार्मिक यात्रा के लिए इराक गए और वहां से ईरान पहुंचे। वहां उन्होंने 3 निकाह किए। तीन बेगमों से उनके 5 औलादें हुईं और खामेनेई का खानदान आगे बढ़ा।

इतिहासकार बताते हैं कि खामेनेई के पूर्वज ऐसा जीवन जीना चाहते थे जो शांतिपूर्ण और प्रतिष्ठित तो हो ही, जिसमें वो अपना धार्मिक कामकाज बिना किसी व्यवधान के कर सकें। लखनऊ, बाराबंकी और हैदराबाद के नवाब शिया विद्वानों को मस्जिदों और इमामबाड़ों में संरक्षण देते थे। शरण के साथ मान-सम्मान मिलने पर ईरान के तमाम शिया विद्वान भारत में रहकर धर्म का प्रचार-प्रसार करते थे।

खामेनेई का परिवार मूल रूप से ईरानी है लेकिन भारत की पहचान को पूरे परिवार ने बड़े गर्व से अपनाया है। यही कारण है कि खामेनेई पर भारतीय होने का तंज आज भी कसा जाता है। बहरहाल, किंतूर गांव में आज भी खामेनेई के रिश्तेदार रहते हैं।

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